Add To collaction

यादों के झरोखे भाग ३१

डायरी दिनांक १४/१२/२०२२

  शाम के छह बजकर पैंतालीस मिनट हो रहे हैं ।

  आज का दिन अदालत में व्यस्त रहा। घर आते आते शाम हो गयी। शरीर काफी थक रहा है।

  बुरी यादों को मनुष्य जितना भूलना चाहता है, वे यादें उसे उतना ही अधिक तड़पाती हैं। मनुष्य उनसे बचना चाहता है और वे स्मृतियाँ उसका मार्ग रोककर खड़ी होती हैं। मनुष्य अपने जीवन में आगे बढना चाहता है पर वे दुष्ट हृदया उसका पथ अवरुद्ध करती हैं। किसी भी मनुष्य के जीवन पथ को रोके वह हमेशा ही निंदनीय कहा जाता है।

  साजिश रचने बाले लोग हर समय साजिश ही रचते रहते हैं। उनके साथ कितनी भी निश्छलता का व्यवहार किया जाये, उनका आचरण हमेशा कपटपूर्ण ही होता है। जोंक की गति हमेशा घुमावदार ही होती है।

  कहा जाता है कि मनुष्य जब संसार में आता है, उसी समय कर्मफलों से बंधा हुआ आता है। मनुष्य कर्मफलों के उस बंधन को कभी पार नहीं कर पाता। अन्यथा अच्छा करने के बाद भी उसके साथ बुरा क्यों होता। सरल व्यवहार के बाद उसे क्यों छल मिलता। अच्छे सांसारिक सुखों के उपरांत भी वह क्यों असीम वेदना का अनुभव करता। क्यों उसकी लगातार कष्ट निवारण की प्रार्थना भी उसके आराध्य सुनकर भी अनसुना कर देते।


  श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने तितिक्षा का सिद्धांत दिया है। यह सिद्धांत भी प्रकारांतर से कर्म फल सिद्धांत से संबंधित है। मनुष्य अपने कर्मों का फल भोगता ही है। इस विषय में कुछ और नहीं हो सकता है। बस तितिक्षा धर्म का ही पालन किया जा सकता है। सुखों में अधिक खुश होना उचित नहीं है तथा दुखों में भी धैर्य रखना चाहिये। इसके बाद भी सत्य है कि कई बार दुखों में धैर्य नहीं रहता। जबकि दुख निवारण कर्ता उन दुखों को बार बार कुरेदने का प्रयास करे। ऐसे में वे बातें भी याद आ जाती हैं जिन्हें यत्न पूर्वक भुला दिया गया था।

 
अभी के लिये इतना ही। आप सभी को राम राम ।
   

   7
0 Comments